वंदे मातरम: एक गीत जो आंदोलन बन गया

उस गीत की कहानी जो भारत की आत्मा की आवाज़ बन गया।

एक गीत का जन्म

यह कहानी एक गीत की है। एक ऐसा गीत जो महज़ शब्द नहीं, बल्कि एक एहसास है। इसकी शुरुआत 1870 के दशक में हुई, जब बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत और बंगाली में कुछ पंक्तियाँ लिखीं। इन पंक्तियों का अर्थ था "माँ, मैं तुम्हारी वंदना करता हूँ।"

एक उपन्यास का हृदय

ये पंक्तियाँ सिर्फ़ एक कविता नहीं थीं। 1882 में, ये बंकिम चंद्र के उपन्यास 'आनंदमठ' का हिस्सा बनीं। यह उपन्यास 18वीं सदी के संन्यासी विद्रोह पर आधारित था, जो विद्रोह और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत था।

जब पहली बार गूँजी धुन

बहुत सालों तक यह गीत किताबों में ही रहा। फिर 1896 में, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में इसे पहली बार गाया। उनकी आवाज़ में यह गीत पूरे देश के कानों में गूंज उठा।

आंदोलन की आवाज़

1905 तक, 'वंदे मातरम' सिर्फ़ एक गीत नहीं रहा, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों का नारा बन गया। यह बंगाल के विभाजन के खिलाफ़ सड़कों पर गूंजने वाली आवाज़ थी। यह एकता और विद्रोह का प्रतीक बन चुका था।

जब गीत गाना अपराध था

इस गीत की बढ़ती ताकत से अंग्रेज़ी हुकूमत डर गई। उन्होंने उपन्यास 'आनंदमठ' पर प्रतिबंध लगा दिया और सार्वजनिक रूप से 'वंदे मातरम' गाना एक अपराध घोषित कर दिया। लेकिन पाबंदी ने इस गीत को और भी शक्तिशाली बना दिया।

शहीदों के आखिरी शब्द

कई स्वतंत्रता सेनानियों ने इस गीत के लिए अपनी जान दे दी। मातंगिनी हाजरा जैसी वीरांगना ने अंग्रेज़ों की गोली लगने के बाद अपने आखिरी शब्दों में 'वंदे मातरम' कहा। यह गीत अब बलिदान का पर्याय बन चुका था।

एक ध्वज पर अंकित

भारत के पहले झंडों में से एक, जिसे 1907 में भीकाजी कामा ने बनाया था, उस पर भी 'वंदे मातरम' लिखा हुआ था। यह गीत अब सिर्फ़ ज़ुबान पर नहीं, बल्कि देश के ध्वज पर भी अंकित हो गया था।

एक राष्ट्रीय बहस

जैसे-जैसे गीत की लोकप्रियता बढ़ी, कुछ विवाद भी सामने आए। इसके बाद के छंदों में हिंदू देवी-देवताओं जैसे दुर्गा और लक्ष्मी का उल्लेख था, जिस पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई। सवाल यह था कि क्या यह पूरे राष्ट्र का गीत बन सकता है?

एकता की ओर एक कदम

1937 में, कांग्रेस ने एक रास्ता निकाला। मौलाना आज़ाद, नेहरू और बोस जैसे नेताओं की समिति ने फैसला किया कि गीत के केवल पहले दो छंद, जो माँ और मातृभूमि का सुंदर वर्णन करते हैं, उन्हें ही अपनाया जाएगा। यह एक सम्मानजनक समाधान था।

एक राष्ट्र का गीत

24 जनवरी 1950 को, भारत की संविधान सभा ने 'वंदे मातरम' को आधिकारिक तौर पर 'राष्ट्रगीत' के रूप में अपनाया। सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि इसे राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' के बराबर सम्मान दिया जाएगा।

सम्मान और स्थिति

लेकिन 'बराबर सम्मान' का क्या मतलब है? संविधान में 'राष्ट्रगीत' का उल्लेख नहीं है। राष्ट्रगान के विपरीत, इसे गाने के कोई आधिकारिक नियम नहीं हैं। यह कानूनी बहस आज भी जारी है।

एक वैश्विक प्रतिध्वनि

इस गीत की गूंज सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रही। 2002 में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के एक सर्वेक्षण में 'आनंद मठ' फिल्म के 'वंदे मातरम' को दुनिया का दूसरा सबसे प्रसिद्ध गीत चुना गया था।

दिल में बसा एक गीत

महात्मा गांधी ने कहा था, "यह करोड़ों लोगों के दिलों में बसा है।" 'वंदे मातरम' एक गीत से कहीं ज़्यादा है; यह भारत के इतिहास, संघर्ष और अपनी मातृभूमि के प्रति गहरे प्रेम का एक जीवंत प्रतीक है।

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