प्राचीन दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति कौन थी? एक अनकही कहानी।
जब हम प्राचीन दुनिया के बारे में सोचते हैं, तो रोम के सम्राटों और ग्रीस के दार्शनिकों की तस्वीरें उभरती हैं। लेकिन उसी समय, एक और विशाल और समृद्ध सभ्यता दुनिया को आकार दे रही थी - प्राचीन भारत।
क्षेत्रफल के मामले में, सम्राट अशोक के अधीन मौर्य साम्राज्य (लगभग 50 लाख वर्ग किमी) और सम्राट ट्राजन के रोमन साम्राज्य (लगभग 50 लाख वर्ग किमी) में कड़ी टक्कर थी। ये उस युग के दो सबसे बड़े साम्राज्य थे।
यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने भारत की राजधानी पाटलिपुत्र को एक विशाल, भव्य और सुनियोजित शहर बताया, जिसकी प्रशासनिक व्यवस्था देखकर वह चकित रह गए थे।
असली कहानी दौलत की थी। भारत उस युग का आर्थिक इंजन था। बेहतरीन मसाले, कीमती मोती और दुनिया के सबसे अच्छे कपड़े भारत से ही पूरी दुनिया में जाते थे।
रोमन इतिहासकार प्लिनी द एल्डर ने दुख जताया था कि भारतीय विलासिता का सामान खरीदने के लिए रोम का सोना 'नदियों की तरह' भारत में बह रहा था। व्यापार संतुलन पूरी तरह से भारत के पक्ष में था।
यूनानी इतिहासकार एरियन ने लिखा, 'यह भारत की एक remarquable बात है कि सभी भारतीय आज़ाद हैं, और कोई भी भारतीय गुलाम नहीं है।' यह एक ऐसा समाज था जो रोम और ग्रीस से बिलकुल अलग था, जहाँ गुलामी आम थी।
सम्राट अशोक ने एक अनोखी राजनीतिक विचारधारा अपनाई। वह अपनी प्रजा को अपनी 'संतान' मानते थे और उनके कल्याण को अपना सर्वोच्च कर्तव्य। यह 'पितृ सत्ता' का एक अनूठा रूप था।
विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार एच.जी. वेल्स ने लिखा, 'इतिहास के पन्नों में भीड़ लगाने वाले हज़ारों राजाओं के नामों के बीच, अशोक का नाम एक अकेले सितारे की तरह चमकता है।'
गणित की दुनिया को भारत का सबसे बड़ा तोहफा मिला। शून्य (0) और दशमलव प्रणाली का आविष्कार यहीं हुआ, जिसने आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी की नींव रखी।
जिसे आज हम पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जानते हैं, उसे सदियों पहले भारतीय गणितज्ञ बौधायन ने अपने 'शुल्बसूत्र' ग्रंथ में विस्तार से समझाया था।
जब दुनिया का एक बड़ा हिस्सा मानता था कि पृथ्वी चपटी है, तब 5वीं सदी के भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने घोषणा की कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है, जिससे दिन और रात होते हैं।
दिल्ली का 1600 साल से भी ज़्यादा पुराना लौह स्तंभ आज भी खुले आसमान के नीचे बिना ज़ंग लगे खड़ा है। यह प्राचीन भारत की उन्नत धातु कला का एक जीता-जागता सबूत है।
कलिंग के विनाशकारी युद्ध के बाद, अशोक ने सैन्य विजय को हमेशा के लिए त्याग दिया और 'धम्म-विजय' (धर्म और नैतिकता से विजय) की नीति अपनाई। यह शांति और सहिष्णुता का एक वैश्विक संदेश था।
कुषाण साम्राज्य के तहत, यूनानी कला और बौद्ध दर्शन के संगम से गांधार कला का उदय हुआ। यह संस्कृतियों के खूबसूरत मिलन का प्रतीक था, जो दिखाता है कि विचार कैसे सीमाओं से परे यात्रा करते हैं।
ग्रीस ने दर्शन दिया, रोम ने कानून। पर प्राचीन भारत ने धन, ज्ञान और करुणा पर आधारित एक ऐसी गौरवशाली सभ्यता का निर्माण किया, जिसकी विरासत आज भी दुनिया को प्रेरित करती है।
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