मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या, अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।
अंबर में जितने तारे, उतने वर्षों से, मेरे पुरखों ने धरती का रूप सँवारा।
धरती को सुंदरतम करने की ममता में, बिता चुका है कई पीढ़ियाँ, वंश हमारा।
और आगे आने वाली सदियों में मेरे वंशज धरती का उद्धार करेंगे।
इस प्यासी धरती के हित में ही लाया था हिमगिरी चीर सुखद गंगा की निर्मल धारा।
मैंने रेगिस्तानों की रेती धो-धोकर वन्ध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए।
मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या?