एक आंदोलन, लाखों चेहरे, और एक ऐतिहासिक जीत। स्वाइप करके देखें पूरी दास्ताँ।
सितंबर 2020 में संसद ने तीन नए कृषि कानून पारित किए। सरकार ने इन्हें 'ऐतिहासिक सुधार' कहा, पर किसानों को इसमें अपनी ज़मीन और भविष्य का सौदा नज़र आया। यहीं से एक अभूतपूर्व संघर्ष की नींव पड़ी।
पंजाब और हरियाणा से हज़ारों ट्रैक्टरों का काफिला 'दिल्ली चलो' के नारे के साथ निकला। रास्ते में पानी की बौछारें, आंसू गैस और बैरिकेड्स भी उनके इरादों को डिगा नहीं पाए। दिल्ली की सरहदें एक नए रणक्षेत्र में बदल रही थीं।
सिंघु, टिकरी, गाज़ीपुर - दिल्ली के बॉर्डर किसानों के नए घर बन गए। ट्रैक्टर-ट्रॉलियों और टेंटों का एक पूरा शहर बस गया, जहाँ हर सुबह उम्मीद और संघर्ष के साथ होती थी। यह दुनिया के सबसे लंबे और बड़े विरोध प्रदर्शनों में से एक की शुरुआत थी।
ये सिर्फ धरने की जगहें नहीं थीं। यहाँ 24 घंटे लंगर चलता था, बच्चों के लिए 'पाठशाला' थी और युवाओं के लिए लाइब्रेरी। दीवारों पर कलाकृतियाँ और मंचों पर लोकगीत, यह विरोध का एक रचनात्मक और अनूठा रूप था।
आंदोलन की अपनी आवाज़ थी - 'ट्रॉली टाइम्स' नाम का अख़बार, जो सीधे प्रदर्शन स्थल से छपता था। यह सोशल मीडिया के दौर में ज़मीनी पत्रकारिता का एक शक्तिशाली उदाहरण बना, जो किसानों की बात दुनिया तक पहुँचा रहा था।
रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग जैसी अंतरराष्ट्रीय हस्तियों के ट्वीट्स ने इस आंदोलन को वैश्विक मंच पर ला खड़ा किया। #FarmersProtest दुनिया भर में ट्रेंड करने लगा और विदेशी मीडिया में भारत के किसानों की चर्चा होने लगी।
सरकार और किसान नेताओं के बीच 11 दौर की लंबी बातचीत हुई। सरकार कानूनों में संशोधन पर ज़ोर देती रही, जबकि किसान तीनों कानूनों को पूरी तरह रद्द करने की मांग पर अड़े रहे। हर बैठक बेनतीजा समाप्त हुई।
गणतंत्र दिवस 2021 पर निकाली गई ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा भड़क उठी। कुछ प्रदर्शनकारी तय रास्ते से भटक कर लाल किले तक पहुँच गए और वहाँ अपना झंडा फहरा दिया। इस घटना ने पूरे आंदोलन पर एक गहरा दाग लगाया।
26 जनवरी की हिंसा के बाद लगा कि आंदोलन खत्म हो जाएगा। लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं ने बाजी पलट दी। उनकी भावुक अपील के बाद, गाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों की भीड़ पहले से भी ज़्यादा बढ़ गई।
कड़कड़ाती ठंड, झुलसाती गर्मी और कोविड-19 की लहर। एक साल से ज़्यादा चले इस आंदोलन में 700 से अधिक किसानों ने अपनी जान गंवाई। यह संघर्ष की मानवीय कीमत थी, जिसने कई परिवारों को हमेशा के लिए बदल दिया।
19 नवंबर 2021, गुरु नानक जयंती का दिन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का चौंकाने वाला ऐलान किया। किसानों के लिए यह एक साल के तप और संघर्ष की ऐतिहासिक जीत थी।
378 दिनों के बाद, किसानों ने दिल्ली की सीमाओं से अपने तंबू उखाड़ दिए। यह घर वापसी का एक भावुक क्षण था। ट्रैक्टरों पर नाचते-गाते किसान अपने गाँवों की ओर लौट रहे थे, एक ऐतिहासिक जीत का उत्सव मनाते हुए।
आंदोलन खत्म हो गया, पर MSP पर कानूनी गारंटी जैसे कई सवाल छोड़ गया। यह आंदोलन भारत के लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध की ताकत का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया है। यह दिखाता है कि संगठित नागरिक आवाज को अनसुना नहीं किया जा सकता।
यह कहानी सिर्फ कानूनों की नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़े लोगों के आत्मसम्मान, दृढ़ता और एकता की है। यह हमें याद दिलाती है कि जब आम लोग एक साथ खड़े होते हैं, तो वे इतिहास का रुख मोड़ सकते हैं।