समकालीन हिंदी साहित्य की एक झलक
2020 के बाद हिंदी साहित्य में कई उत्कृष्ट कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। ये रचनाएँ सामाजिक मुद्दों, व्यक्तिगत संबंधों और क्षेत्रीय कहानियों को उजागर करती हैं।
पीयूष मिश्रा की 'सन 2025' (2020) भविष्य की एक काल्पनिक तस्वीर पेश करती है। यह एक डायस्टोपियन उपन्यास है।
विनीता अस्थाना की 'बेहया' (2021) एक साहसिक और मार्मिक उपन्यास है। यह स्त्री मन की गहराइयों को छूता है।
नीलेश रघुवंशी की 'शहर से दस किलोमीटर' (2022) ग्रामीण जीवन का चित्रण करती है। यह पलायन और विस्थापन के मुद्दे उठाती है।
संजीव का उपन्यास 'मुझे पहचानो' (2023) पहचान के संकट पर आधारित है। यह आधुनिक जीवन की जटिलताओं को दर्शाता है।
दिव्य प्रकाश दुबे की 'यार पापा' (2023) पिता-पुत्र के रिश्ते पर एक अनोखी कहानी है। यह हल्के-फुल्के अंदाज में गंभीर बात कहती है।
कैलाश मंजू बिश्नोई की 'कलेक्टर साहिबा' (2024) एक महिला अधिकारी के जीवन पर आधारित है। यह प्रेरणादायक कहानी है।
राजेश बेरी की 'प्रेम भंवर' (2020/2024) प्रेम की भावनाओं का चित्रण करती है। यह एक भावुक रचना है।
गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि' (2018/2022) विभाजन की त्रासदी को दर्शाती है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता।
दिव्य प्रकाश दुबे की 'इब्नेबतूती' (2017/2020) एक यात्रा वृत्तांत है। यह जीवन के अनुभवों को साझा करती है।
गगन गिल की 'मैं जब तक आई बाहर' (2024) एक कविता संग्रह है। यह जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूती है।
दिव्य प्रकाश दुबे की 'आको बाको' (2021) 16 छोटी कहानियों का संग्रह है। यह आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत करता है।
नीलोत्पल मृणाल की 'यार जादूगर' (2021) एक जादुई दुनिया की कहानी है। यह दोस्ती, साहस और हिंदी साहित्य की सुंदरता का अद्भुत मिश्रण है।
अतुल कुमार राय की 'चांदपुर की चंदा' (2022), जिसे 2023 का साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिला, उत्तर प्रदेश के एक गांव की कहानी है। यह चंदा नाम की एक युवती के सपनों और संघर्षों को दर्शाती है।
ये पुस्तकें हिंदी साहित्य की विविधता और समृद्धि को दर्शाती हैं। ये समकालीन समाज का आईना हैं।